गिरता मतदान:”क्या मतदाता ऊब चुका है या गुस्से में है ?
- शरद गोयल
- Mar 5
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Updated: Mar 8
2 मार्च को हरियाणा में स्थानीय निकायों के चुनाव हुए और उनमें एक चीज सामने आई कि मतदान प्रतिशत दिन पर दिन गिरता जा रहा है। चुनाव आयोग व प्रशासन के लिए ये चिन्ता व शोध का विषय है कि वोट प्रतिशत निकायों के चुनाव में क्यांें इतना गिर गया। क्या लगभग 13 महीनें में तीसरी बार पोलिंग बूथ पर जाना मतदाता को रास नहीं आ रहा? या वो स्थानीय प्रशासन से क्षुब्ध है या इस पूरी व्यवस्था से नाराज व गुस्से में है। हालांकि यह विषय राजनेताओं के शोध व चिन्ता का है किन्तु वह इस पर उसी समय चिन्ता करेंगे जब गिरते हुए मतदान से उनकी गद्दी पर खतरा होगा। यदि गिरता मतदान पार्टी के पक्ष में जाता है तो वो इस ओर कभी भी चिन्ता नहीं करेंगे। हाँ चुनाव आयोग को इस ओर जरूर संज्ञान लेना चाहिए और गम्भीरता से इसके कारणों की जाँच करनी चाहिए।
यदि हम गुरूग्राम के निकाय चुनावों की बात करें तो कुछ क्षेत्रों में तो मतदान प्रतिशत में चिन्ताजनक गिरावट आई है। मुझे लगता है पिछले कुछ वर्षों में जिस प्रकार से गुरूग्राम शहर में मूलभूत समस्याओं का अम्बार लगा है, सफाई व्यवस्था लगभग चरमरा सी गई है। छोटी हों या बड़ी लगभग सभी सड़के पार्किंग में बदलती जा रही हैं। फुटपाथ या तो टूटे हुए हैं या जहाँ थोड़े बहुत ठीक भी हैं उन पर फल बेचने वालों का कब्जा है। यातायात व्यवस्था भी चरमरा गई है। यातायात में तैनात स्टाफ का काम यातायात को सुचारू रूप से चलाना नहीं है अपितु गाड़ी चला रहे लोगों को चालान के माध्यम से परेशान करना है। स्ट्रीट लाइट लगभग सारे शहर की खराब है, हालांकि काॅरपोरेशन दावा करता है कि एक बड़ी एजेन्सी को पूरे शहर की स्ट्रीट लाइट ठीक करने व रखरखाव करने का एक भारी भरकम राशि का ठेका दे दिया गया है। किन्तु इस पर कोई खस असर दिखाई नहीं देता। कचरे को गायों द्वारा खाने का दृश्य गुरूग्रामवासियों के लिए सामान्य सा हो गया है। आवारा कुत्ते व बंदरों को शहर से हटाने की कोई योजना प्रशासन के पास नहीं है।शहर के मुख्य पार्कोे का बुरा हाल है। यदि आप गुरूग्राम की सब्जी मंडी में चले जाएं तो इस बात की पूरी सम्भावना है कि आप खाली हाथ आ जाएं क्योंकि वहाँ फैले गंद को देखकर आप कुछ नहीं खरीद पाएंगे।
गुरूग्रामवासियों ने बहुत उम्मीदों से बड़े दिन तक मांग करने के बाद ळडक्। का गठन करवाया। लेकिन गुरूग्राम का दशा दिन प्रतिदिन बदतर होती गई। ळडक्। के निर्माण से एक और एजेंन्सी गुरूग्रामवासियों को परेशान करने के लिए खड़ी हो गई है। बजाए कि समस्याओं का समाधान एक छत के नीचे करती ।
दरअसल सभी समस्याओं से ग्रस्त आम आदमी का गुस्सा सांसद पर ही टूटता क्योंकि उसको राष्ट्र के बड़े फैसले लेने के लिए भेजा जाता है। हालांकि ये एक दुर्भाग्य की बात है कि समस्याएं सांसद व विधायक महोदय के संज्ञान में नहीं आती है ंतो मतदाता का गुस्सा पार्षद पर टुटना स्वाभाविक है। एक दो दिन में चुनाव के नतीजे भी आ जाएंगे। गुरूग्राम को एक नया मेयर भी मिल जाएगा और पार्षदों की एक सेना भी मिल जाएगी। कुछ पार्षद तो ऐसे भी हैं जो पिछले 10 सालों से पार्षद हैं ओर आगे भी उनके जीतने की सम्भावना है, किन्तु उनके क्षेत्रा में भी समस्याएं जैसे की तैसे बनी हुइ हैं। राजनेताओं के कमजोर होने का फायदा अधिकारी उठाते हैं। अधिकारी गंरूग्राम में अपनी पोस्टिंग अपने चण्डीगढ़ के आकाओं के माध्यम से करवाते हेैं। उनको इस बात का एहसास होता हे कि गुरूग्राम का पार्षद उनका बाल भी बांका नहीं कर सकता। परिणामस्वरूप वो अपनी इच्छानुसार कार्य करते हैं। सम्भावना है कि इस चुनाव में मेयर व उनकी टीम भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों की ही आए। पर ये नई टीम आम जन को समस्याओं से किस प्रकार से मुक्ति दिलवाएगी, ये तो आने वाला समय बताएगा। अभी तो गंरूग्राम का मतदाता वोट डाल डाल कर दुखी हो चुका है। किन्तु उसकी समस्याओं का कोई समाधान नहीं हो रहा है।
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