कानूनी दस्तावेज बने घोषणापत्र
- शरद गोयल
- Aug 27, 2024
- 4 min read
Updated: May 30
जैसे-जैसे लोकसभा चुनावों का समय नजदीक आता जा रहा है सभी राजनितिक दल लोक-लुभावन घोषणापत्र जारी कर रहे है। इस कड़ी में कल बिहार के एक ऐसे राजनितिक दल जोकि कई दशकों तक बिहार पर राज करता रहा और बिहार की दुर्दशा करने में मुख्य योगदान निभाता रहा उस दल ने 1.5 करोड़ लोगों को सरकारी नौकरियां देने का वादा किया। किसानों के कर्जे माफ़ करेगा और ना जाने कितने-कितने लोक-लुभावन वायदे किए गए है।
घोषणा पत्र को चुनाव आयोग को अत्यंत गंभीरता से लेना चाहिए इतना ही नहीं चुनाव आयोग को पिछले चुनाव में इन दलों द्वारा किए गए घोषणा पत्रों की भी समीक्षा करनी चाहिए कि उन्होंने चुनाव में क्या घोषणाएं की थी और वह किन हालातो के चलते पूरी नहीं कर पाए। प्रथम दृष्टा में लगता है कि यह घोषणा पत्र जनता को गुमराह करने का और उनकी भावनाओं से खिलवाड़ करने का एक दस्तावेज बन गया और किसी भी राजनीतिक पार्टी की इस दस्तावेज के प्रति कोई जवाब देही नहीं, तो क्या यह दस्तावेज मात्र एक दिखावा है। क्यों ना भारत के राष्ट्रपति व चुनाव आयोग इसकी और गंभीरता से विचार करें। इसके लिए चाहे कानून में भी बदलाव करने की आवश्यकता हो तो उसे करना चाहिए। चुनाव घोषणा पत्र में दिए गए सभी मुद्दों को संबंधित पार्टी शक्ति से लागू करें यह सुनिश्चित करने के लिए चुनाव आयोग सतत निगरानी रखे ।पिछले कुछ सालों में इस दस्तावेज के माध्यम से जो व्यवस्था का मजाक बनाया गया है वह भी ध्यान देने योग्य है।
पिछले लगभग 70 साल से हर चुनावी पार्टियों गरीबों को मकान दे रही हैं और बिना मकान के गरीबों की तादाद भारी मात्रा में बढ़ती जा रही है। यदि ध्यान दे तो देश में अशिक्षित बेरोजगार और बिना स्वास्थ्य सुविधा के धक्के खाते लोगों की जमात दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है आखिर यह विरोधाभास क्यों है?
यह मूलभूत चार चीज़ सभी पार्टियों चाहे वह क्षेत्रीय हूं या राष्ट्रीय चुनावी घोषणा पत्रों में है और यह समस्याएं आज देश के सामने विकराल रूप लेकर खड़ी हुई है। किसी दल ने भी इन समस्याओं को सुलझाने के लिए गंभीर प्रयास किया होता तो आज देश की दशा व दिशा शायद कुछ और ही होती। लगभग 70 साल राज करने के बाद यदि इन दलों को 50-50 पृष्ठ के अपने घोषणा पत्र देने पड़ते हैं। और दुर्भाग्य की बात यह है कि जनता इन सभी घोषणा पत्रों पर विश्वास करके ऐसे दलों के झूठे बहकावे में आती है और इनको सत्ता के करीब पहुंचती है।
बेरोजगारी भत्ता जैसी योजनाओं ने इस देश में एक निष्क्रिय लोगों की एक बहुत बड़ी जमात खड़ी कर दी है। अच्छा हो अगर सत्ता में आने के बाद यह दल इस तरह की योजनाओं जिसे समाज में निष्क्रिय लोगों की जमात खड़ी होती हो उसको करने के बजाय देश के नौजवानों को रोजगार कैसे मिल सके यह पैसा रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने में लगाए।
चुनाव घोषणा पत्र में घोषित सारी बातें जनता ध्यान पूर्वक पढ़े और इससे पहले चुनाव में उसे दल ने क्या घोषणाएं की थी उससे उनका मिलान करें। उन घोषणाओं में कितनी योजनाओं को उन्होंने लागू किया और कितने नहीं उसका मूल्यांकन करें और उम्मीदवारों से जवाब मांगे की जो योजनाएं उन्होंने पिछले चुनाव में घोषित की थी वह क्यों पूरी नहीं की गई। मुझे ऐसा लगता है कि चुनावी घोषणा पत्र को राजनीतिक पार्टियों ने भी एक मजाक का विषय बना दिया है। जनता भी इसे मात्र मजाक का ही विषय मानती है। अतः देश के प्रथम चुनाव में गरीबी खत्म करने का वादा लगभग 70 साल बाद हो रहे चुनाव में नहीं होता चुनाव आयोग को इस और ध्यान देना चाहिए राजनीतिक पार्टियों की जवाब देही होनी चाहिए। मेरा मानना है कि यह दस्तावेज एक अत्यंत गंभीर वह महत्वपूर्ण दस्तावेज है और इसमें यह प्रावधान होना चाहिए कि यदि कोई दल से दस्तावेज में घोषित की हुई बातों में से यदि 75% बातें पूरी नहीं करता तो उसे दल की मान्यता खत्म हो और इतना ही नहीं आप मतदाता को यह अधिकार होना चाहिए कि संबंधित पार्टी उम्मीदवार के खिलाफ आईपीसी की धारा के तहत सामान्य आमजन को धोखा देने गुमराह करने और पद का दुरुपयोग करने के आरोप में कानून के अंतर्गत फिर दाखिल हो। मैं पूरे विश्वास और दावे से कहता हूं कि इस दस्तावेज की गंभीरता को बनाने के लिए है कम आवश्यक है और ऐसा करना चुनावी प्रक्रिया में और सुधार लाने की दिशा में कारगर साबित होगा।
इस कड़ी में इसी श्रृंखला में गैस सिलेंडर पांच सौ रुपए में देना। वृद्धा अवस्था पेंशन को डबल करना। सभी स्नातकों को बेरोजगारी भत्ता देना, महिलाओं को घर बैठे पेंशन देना, कक्षा बारहवी तक मुफ्त शिक्षा देना। करोड़ों लोगों को मुफ्त घर देना और ना जाने ऐसे लोक-लुभावन घोषणाएं जो यथार्थ के पटल पर कभी संभव नहीं हो सकती है और अतीत में ऐसा होता भी आया है।
मेरा ऐसा मानना है कि सभी राजनितिक दलों को अपने पुराने घोषणापत्र का तुलनात्मक विश्लेषण आम नागरिकों को बताना चाहिए। कितने प्रतिशत घोषणाएं पिछले चुनावों की इस चुनाव में पूरी की और कितने प्रतिशत घोषणाएं किन कारणों से पूरी नहीं हो पाई। इन कारणों को विस्तार से बताना आवश्यक हो। दरअसल घोषणापत्र को एक कानूनी दस्तावेज माना जाए और इसको शपथपत्र की तरह से पेश किया जाना चाहिए। चुनाव आयोग व माननीय उच्चतम न्यायालय इस पर निगरानी रखे और एक-एक घोषणा वार राजनितिक दलों से घोषणा पत्र की घोषणाओं के बारे में जवाबदेह बनाया जाए और इस घोषणापत्र को अधिकृत कानूनी दस्तावेज के रूप में समझा जाए।
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