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गुड़गांव मैं तुझे बहुत प्यार करता हूँ,

  • Writer: शरद गोयल
    शरद गोयल
  • Aug 1, 2024
  • 8 min read

Updated: May 30


अभी कल की सी बात लगती है जब मुझे याद आता है, दिल्ली की सीमा से सटा हुआ एक छोटा सा शहर किसका ऐतिहासिक महत्व महाभारत कालीन गुरु द्रोणाचार्य से जुड़ा हुआ है, और सेना के एक कैंट और माता शीतला देवी इस शहर की मुख्य पहचान होती थी, यह कोई बहुत पुरानी बात नहीं मात्र 20 साल में इस गुड़गांव नाम के शहर ने जो भौतिक ऊंचाइयाँ छुई है, उतनी शायद ही इतने कम समय में विश्व में किसी अन्य शहर ने छुई हो, इन 20 सालों में इस शहर में जो पैसे का चमत्कार हुआ उसकी चर्चा शब्दों में करना शायद संभव न हो, वैसे तो गुड़गांव में विकास की हल्की सी आहट उसी समय आने लगी थी जिस समय यहां पर 1976-77 के आस-पास मारुति उद्योग ने और उसके बाद हीरो-होण्डा व इन दोनों के सहायक उद्योगों ने जन्म लिया, रोजगार की दृष्टि से इन दोनों बड़े उद्योगों ने गुड़गांव को विकास की गति की पटरी पर डाला, लेकिन पिछले 20 सालों में दुनिया की शायद ही ऐसी कोई कम्पनी जो कि भारत में अपना किसी न किसी रुप में व्यवसाय जमाये हुये हैं, का कोई प्रतिष्ठान या कार्यालय गुड़गांव में न हो, ऐसा शायद संभव नहीं है, आज गुड़गांव में देश के बड़े से बड़े असपताल, शाॅपिंग माॅल, स्कूल, और मल्टीफैक्स आदि विद्यमान है, सच बात तो यह है कि लगभग 12 लाख की आबादी वाला यह शहर आज अपने आप में एक अनोखा शहर बन गया है।

इस शहर के इस खूबसूरत छोटे से सुंदर चेहरे के पीछे एक बहुत ही विराट व डरावना चेहरा छुपा हुआ है जिसके बारे में चर्चा करना अत्यन्त आवश्यक है, दरअसल इस 15-20 साल की चकाचैंध में जो पैसे का अपार खेल हुआ उसमें यहां के लोगों को इस डरावने चेहरे को देखने का मौका ही नहीं दिया, पुराने गुड़गांव क्षेत्र के अलावा लगभग 25 सेक्टरों में बंटा हुआ गुड़गांव आज हुड्डा के लगभग सवा सौ सैक्टरों में बंट गया है, नगर पालिका के स्थान पर नगर निगम हो गया है जिसमें 35 पार्षद इस विराट शहर की समस्याओं को सुलझाने के लिये, कहने के लिये, दिन रात लगे रहते है, दो विधायक, एक सांसद इस क्षेत्र की निगरानी के लिये जनता का प्रतिनिधित्व करते है और जहां तक सरकारी तन्त्र का सवाल है, उसकी भी बढोत्तरी कोई कम नहीं हुयी है, 15 साल में 15 गुना बढ़ोत्तरी तो अवश्य ही हुयी है, डी.सी., एस.पी. और एडमिस्ट्रेटर हुड्डा इन तीन अधिकारियों के स्थान पर आज इस शहर को संभालने में लगभग दो दर्जन से अधिक आई.ए.एस. व आई.पी.एस. अधिकारी लगे हुये है। यह हाल तो तब है कि जब इस जिले का बहुत सा भाग कट कर मेवात, व रेवाड़ी जिले में चला गया।

इन सब बातों के साथ-साथ मेरा यह फर्ज बनता है कि आपको गुड़गांव की उस डरावनी सूरत से भी अवगत कराऊं, लगभग 12 साल की आबादी वाले इस शहर की जन सुविधाओं केा हाल कुछ इस प्रकार से है, पूरे शहर में सार्वजनिक शौचालय नाम की कोई चीज नहीं हैं, पिछले दिनों एक निगमके आयुक्त ने कुछ पोर्टेवल शौचालयों को स्थान-स्थान पर लगाया, यदि उनको आप देखेंगे तो ऐसा लगता है कि जनता के पैसे का इससे बड़ा दुरुपयोग नहीं हो सकता इनमें से अधिकतर या तो वंद पड़े है, या गंदे पड़े है, या तो उनको ऐसे स्थान पर लगाया गया है जहां उनकी उपयोगिता हो ही नहीं सकती, मात्र साल भर पहले लगे यह प्लास्टिक के डब्बे इक्का-दुक्का स्थान पर आपको चिढ़ाते हुये नजर आयेंगे, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने बड़े जोर-शोर से 2 अक्टूबर को स्वच्छ भारत के अभियान का शुभारम्भ किया लेकिन मुझे लगता है कि गुड़गांव में यह अभियान अप्लीकेवल नहीं है, इन्ही आयुक्त महोदय ने लगभग एक साल पहले शहर में कुछ कूड़ेदान लगवाये थे उनमें से कई टूट गये है, जोकि महरौली रोड स्थित राजकीय कन्या महाविद्यालय के सामने व्यापार केन्द्र में पड़े हुये है या जहां लगे हैं वहीं पर टूट कर गिरे हुये है, और यदि 10-20 पूरे शहर में ठीक हालत में है भी तो उनकी सफाई का जिम्मा शायद केन्द्र सरकार के पास है, दरअसल सफाई व कूड़ा उठाने के मामले में गुड़गांव, फरीदाबाद रोड पर एक बहुत बड़ा ट्रीटमेंट प्लांट लगाया गया, उस प्लांट में क्या खेल हुआ यह तो अधिकारी नेता व प्लांट के मालिक ही जाने, परंतु आम जनता जानती है कि वह प्लांट बंद पड़ा है, आज गुड़गांव में लगभग 25 हजार के करीब रिक्शा चालक है, लगभग 20 हजार के करीब आटो रिक्शा है, और लगभग 18 हजार के करीब रेहड़ी वाले है, यह आंकड़ा सिर्फ अनुमान पर आधारित है क्योंकि गुड़गांव प्रशासन ने कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया कि गुड़गांव में किसी महामारी की तरह से फैल रहे रिक्शा, आॅटो रिक्शा और रेहड़ी वालों की संख्या जानी जाये और इनका कोई डेटावेस बनाया जाये, भारत के किसी हिस्से में कोई जघन्य अपराध करके यदि कोई चाऊमीन की रेहड़ी लगाता है तो उसको शायद ही कोई पकड़ पाये, एक अनुमान के मुताबिक लगभग पांच हजार आदमी फुटपाथ के ऊपर व किनारे अपनी दुकाने लगाते है, इन सभी कार्यों के लिये ना किसी प्रकार के रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता है, और ना ही किसी प्रकार की सरकारी अनुमति की, आवश्यकता यदि है तो मात्र बीत कांस्टेबल व नगर निगम हुड्डा के जेई की व्यक्तिगत अुमति की है, गुड़गांव में एक सूचना के द्वारा नगर निगम ने बताया कि निगम द्वारा किसी भी रेहड़ी को पानी बेचने का लाइसेंस दिया गया है, लेकिन आपको खुला पानी बेचने वाली रेहड़ियां शहर में जगह-2 दिखाई देगी, रेहड़ियों पर खाद्य सामग्री जैेस आमलेट, पकौड़े, परांठे आदि बेचने के लिये यहां किसी प्रकार की अनुमति की आवश्यकता नहीं है, सबसे ज्यादा चैका देने की बात यह है कि गुड़गांव में ओटोरिक्शा चलाने के लिये आवश्यक नहीं कि मालिक उसका रजिस्ट्रेशन कराये ड्राइवर के पास लाइसेंस हो और उसके ऊपर उसकी इंश्योरेंश करायी जाये, पूरे शहर सैकड़ों आटो रिक्शोंकी नं. प्लेट पर या तो नम्बर लिया ही नहीं या इस तरह से रिक्शा है कि उसको आप पढ़ नहीं सकते, यदि पुराने शहर में चल रहे बड़े वाले आटो रिक्शा को कभी आप झुण्ड में देखेंगे तो मैं दावे से कहता हूॅ कि आपको शर्म आयेगी कि आप इस शहर में रह रहे हो। पीछे बैठने वाली सवारियों का हाल तो छोड़ो आगे भी पांच व्यक्ति होते हैं जिनमें भी यह जानना कठिन हो जाता है कि आटो कौन चला रहा है, इन्ही सुन्दर व साफ सुरक्षित आटो रिक्शाओं में शाम के वक्त महिलायें भी सफर करती हैं, आठ पुरूषों के बीच में बैठी एक महिला कितनी सुरक्षित महसूस कर रही होगी यह आप जान सकते हैं, लेकिन संबधित विभाग शायद किसी बड़े हादसे के इंतजार में बैठा हो उस हादसे के बाद सारी अनुशासित हो जायेंगी, जहां तक सवाल बुनियादी सुविधाओं का है फुटपाथ चलने योग्य नहीं है, उन पर या तो दुकानें लगीं होगी या फिर कीकर के पेड़ झुककर चलने योग्य न बनाने के लिये प्रयासरत रहते है। यातायात की बात करें तो घंटों जाम में फंस कर प्रदूषण कर आनंद लेना गुड़गांव वालो का स्वभाव बन चुका है, इन 20 सालों में गुड़गांव के भूजल का यह हाल हो गया है कि वह मात्र 100 फुट से 600 फुट की गहराई पर पहुंच गया और 600 फुट के बाद निकलने वाला पानी भी स्वास्थ्य के लिये कितना उपयोगी है, इस पर भी समय-2 पर संदेह वाली रिपोर्ट प्रकाशित होती रहती है। यदि आवारा पशुओं की बात करुं तो यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि किसी भी शहर में पाये जाने वाले आवारा पशुओं जैसे कुत्ते सुअर व गाय की मात्रा सर्वाधिक पायी जायेगी, जहां तक सवाल ग्रीन बेल्ट का है तो गुड़गांव में इस विकास के साथ-2 प्राकृतिक संसाधनों का जितना दुरुपयोग व विनाश हुआ है, उतना शायद ही कहीं हुआ हो प्रशासन की लापरवाही से या कभी सड़कें बनाने के नाम पर, व सड़कों को चैड़ा करने के नाम पर जितने बड़े वृक्षों की कटाई इस शहर में होती है, उतना किसी अन्य शहर में नहीं होती, प्रशासन की लापरवाही से वृक्षों के मरने की खबरें आये दिन समाचार पत्रों में प्रकाशित होती रहती है। सच बात तो यह कि समाचार पत्रों में प्रकाशित होने वाली सामग्री का भी गुड़गांव प्रशासन पर कोई असर नहीं होता दिखता, हीरो होण्डा चैक से बड़ा उदाहरण इस बात का नहीं हो सकता, यदि आपको शाम को 7 बजे खेड़की दौला टोलब्रिज को पास करना पड़ जाये तो आप मन ही मन भगवान से मन्नत मांगोगे कि हे भगवान आज यहां से निकाल दो, फिर कभी यहां नहीं आऊंगा, ’’, दस साल से सुनते आ रहे हैं कि गुड़गांव में एक नया बस अड्डा बनेगा, उसकी जगह भी निर्धारित हो चुकी है, ऐसा सुनते आये हैं लेकिन वह कब बनेगा यह शायद भगवान को भी नहीं पता, गुड़गांव में बस क्यू सेंटर की आवश्यकता शायद प्रशासन को महसूस नहीं होती, है, अभी सुनने में आया है कि कुछ स्थानों पर यह सेन्टर लगाये जा रहे हैं इसी प्रकार गुड़गांव के रेलवे स्टेशन का है, मैं बचपन में दिल्ली से गुड़गांव रेल के माध्यम से आया, जाया करता था और पिछले दिनों फिर से मुझे गुड़गांव रेलवे स्टेशन जाने का मौका मिला तो देखकर आंखों से आँसू आने लगे कि क्या यही देश का साइवर सिटी है, महरौली रोड़ से गुड़गांव जाने वाले मार्ग पर सिकन्दरपुर मार्केट के सामने एक फ्लाई ओवर का निर्माण किया गया, जिससे उल्टी को जाया होगा जो महरौली रोड़ से डी एल एक साखा इस में जाने वाले हैं, और इस रोड पर कुल यातायात का मात्र 20 प्रतिशत से भी कम साइवर हव व एन.एच.-8 को जाता है, फ्लाई ओवर बनाने वालों ने काफी 80 प्रतिशत यातायात के लिये मात्र 8 फुट चैड़ी टूटी सड़क छोड़ दी है, यह गुड़गांव के विकाश का एक ज्वलन्त उदाहरण है, रेपिड मैट्रो भी एक सीमित क्षेत्र के लोगों के ही लाभ दिलाने के लिये बनी, जबकि इसमें यदि सरकारी धन का इस्तेमाल किया गया था तो उसका फायदा पूरे शहर वाशियों को होना चाहिए था, लेकिन योजनाकार कोई पूरे शहर के ठेकेदार तो है नहीं, उन्हें तो मात्र कुछ सीमित लोग व क्षेत्र के ही बारे में सोचना है।

हम बात कर रहे थे हरियाली वृक्षों की तो मुझे लगता है कि वृ़़़़क्षों की देख-रेख का ऐसा कोई विभाग नहीं है, जो कि सार्वजनिक स्थान पर लगे वृक्षों की देखभाल करें, उनकी जड़ों में मलवा न डाला जाये, उनमें किसी सीवर का पानी न आये, जिनसे उनकी जान को खतरा हो, यह जिम्मेदारी निभाये पूरे शहर में सार्वजनिक स्थान व सरकारी सम्पतियों पर पोस्टर बैनर चिपकाकर जैसे आम जन को यह बताती है कि आपने कुछ भी मनमानी करनी हो तो गुड़गांव आ जाओ, अक्सर पुलिस विभाग द्वारा इस बात का प्रचार किया जाता है कि घरेलू कर्मचारियों का पुलिस वेरीफिकेशन अवश्य कराया जाये, लेकिन मेरा मानना है कि गुड़गांव में रेहड़ी व रिक्शा चालक के रुप में लगभग 40 से 50 हजार लोगों के बेरिफिकेशन की जिम्मेदारी किसकी है।

पिछले 10 सालों में गुड़गांव ने पूरे हरियाणा को जो राजस्व कमा के दिया उसकी यदि सही जानकारी मिलेगी तो आंकड़े वाकई चैंकाने वाले होंगे, सरकारी तन्त्र में 10 गुना ज्यादावृद्धि, पुलिस फोर्स में भी लगभग इतनी ही वृद्धि दो थानों की जगह ढाई दर्जन के करीब थाने और जन प्रतिनिधियों की एक लम्बी जमात इस शहर को एक संुदर अनुशासित व सुरक्षित शहर बनाने के लिये कमी है तो इन सभी में इच्छा शाक्ति की,

ऐसा नहीं है कि गुड़गांव में सार्वजनिक संस्थायें व एन जी ओ की भी कमी हो, इन सबके बावजूद भी यह शहर क्यों नहीं ठीक हो रहा। यह एक सोचने का विषय है। यदि समय रहते गुड़गांव के अधिकारियों, व जनप्रतिनिधियों द्वारा यदि बिना राजनीति किये इस ओर गंभीर कदम उठाये जायेंगे और ईमानदारी से प्रयास किये जायेंगे तो वह दिन कभी जरूर आयेगा जब गुड़गांव का हर नागरिक यह कहेगा कि, ‘‘गुड़गांव में तुझे बहुत प्यार करता हँू।

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