मैं किसका चालान कांटू ?”
- शरद गोयल
- Dec 2, 2024
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अक्सर जब करदाताओं की बात करते हैं तो प्रत्यक्ष करदाताओं की ही गिनती करते हैं किंतु अप्रत्यक्ष करदाताओं की गिनती किसी श्रेणी में नहीं होती। उदाहरण के तौर पर एक निहायत ही गरीब व्यक्ति जो कि रेहडी पर कुछ बेचकर अपना पेट भरता है, यदि वह अपने लिए आटा, दाल, चावल, साबुन, तेल, टूथब्रश, टूथपेस्ट, पहनने के कपड़े, बीमार होने पर दवाइयां आदि बाजार से लाता है, तो उसे अप्रत्यक्ष कर देना होता है जोकि आजकल जीएसटी और वेट के रूप में जाना जाता है। करदाता यदि कोई वाहन खरीदता है तो उसको सड़क कर देना होता है। और दूसरे उस वाहन पर कर जो सरकार उस पर वसूल कर रही है वह भी उसकी जेब से जाता है। उसके बाद आयकर आदि भी यह कहकर वसूला जाता है कि उसके द्वारा दिए गए टेक्स से इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण होगा जबकि उस इंफ्रास्ट्रक्चर जिसमें मुख्य राष्ट्रीय राजमार्ग है का इस्तेमाल करने पर उसको भारी मात्रा में टोल टैक्स देना पड़ता है।
अब सवाल यह पैदा होता है कि नागरिक द्वारा किसी भी कानून का पालन न करने पर उनसे चालान या पेनल्टी के रूप में सरकार भारी भरकम राशि वसूलती है। यह नागरिक जब टैक्स देता है इसके टैक्स के पैसों से सरकार एक अलिखित अनुबंध में बंधती है कि वह उसके लिए वह सभी सुविधा प्रदान करेगी जो उसको एक अच्छे नागरिक की तरह जीवन गुजारने में सहायक सिद्ध होगी। पिछले कुछ दशकों से सरकारी स्कूल, हॉस्पिटल व यातायात की दुर्दशा के कारण नागरिकों ने इन सुविधाओं की सरकार से उम्मीद ही करनी बंद कर दी है। जिसके कारण से उनसे शिकायत भी करनी बंद कर दी है।
किन्तु बची कुची जो छोटी-छोटी सुविधाएं हैं, जिनको सुचारू रूप से चलने के लिए आम आदमी शिकायत करता है I उदाहरण के तौर पर बरसात का मौसम समाप्त हुए लगभग दो महीने हो चुके है । टूटी हुई सड़क का निर्माण शुरू भी नहीं हुआ है, मैं किसका चालान कांटू ? मेरे घर के बाहर सूखे पत्तों का अंबार लगा हुआ है जोकि प्रशासन द्वारा नहीं उठाया जा रहा है, मैं किसका चालान कांटू ? मैं पूरे शहर में कहीं पर भी 1 किलोमीटर फुटपाथ पर नहीं चल सकता, क्योकि वह टूटे हुए हैं या उस पर कीकर के पेड़ छाए हुए हैं और यदि कहीं वह साफ है तो उन पर भिन्न-भिन्न वस्तुएं बेचने वालों ने कब्जा किया हुआ है, मैं किसका चालान कांटू ?
मुझे बारिश के दिनों में बारिश में भीगते भीगते ऑटो रिक्शा का इंतजार करना पड़ता है, क्योंकि बस शेल्टर उपयुक्त स्थान पर नहीं लगे हुए हैं, जैसे हीरो होंडा चौक, इफको चौक, राजीव चौक, मैं किसका चालान कांटू ? मेरे शहर के पीने के पानी की गुणवत्ता पूर्ण रूप से खराब हो चुकी है। मेरे शहर की सांस लेने की हवा की गुणवत्ता खतरनाक दौर से गुजर रही है , मैं किसका चालान कांटू ? बरसाती पानी के नाले पूर्ण रूप से प्लास्टिक के कचरे से भरे हुए हैं, जिनसे बीमारियां फैल रही है , मैं किसका चालान कांटू ?
दरअसल आम आदमी को शोषण में जीने की आदत हो गई है और विरोध करने की शक्ति समाप्त हो चुकी है। छोटे से घर पर भी मोटा हाउस टैक्स वसूलने वाले नगर निगम की गलतियों के लिए क्या उसका चालान काटा जा सकता है ? मेरे घर सफाई कर्मचारी नियमित रूप से नहीं आता है और स्ट्रीट लाइट भी टूटी हुई है और सड़क पर खड्डे है, मैं किसका चालान कांटू ? उल्लेखनीय है मैं यहां पर कानून व्यवस्था की बात नहीं कर रहा हूं I मैं सरकार से यह उम्मीद नहीं कर रहा हूं कि यदि मेरी कार चोरी हो गई तो मैं किसका चालान कांटू ? मैं सिर्फ अपनी मूलभूत सुविधाओं की बात कर रहा हूं, क्या इन मूलभूत सुविधाओं के लिए नागरिकों को जागरूक करना होगा या ऐसे ही जीने की आदत डालनी होगी।
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