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यह कौन से ‘‘केक्टस’’ के पेड़ों की नर्सरी है जे.एन.यू.?

  • Writer: शरद गोयल
    शरद गोयल
  • Mar 5, 2023
  • 2 min read

Updated: Mar 5

पिछली 9 फरवरी को आतंकवादी अफजल गुरु को फांसी लगाने की बरसी देश के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय जवाहर लाल नेहरु यूनिवर्सिटी में मनायी गयी जिससे देश से प्रेम करने वाले हर भारतीय के दिल में एक ही ख्याल आया कि यह कोई विश्वविद्यालय है या राष्ट्रविरोधी सोच रखने वाले लोगों की शर्मस्थली या कहें तो जहरीले केक्टस के पेड़ों की नर्सरी इस खबर को जिस भी भारतीय ने देखा उसके होश उड़ गये, राजधानी के बगल के नीचे यह कैसे सांप पल रहे हैं जो अपने ही देश को डसने की तैयारी कर रहे है सारे कार्यक्रम में अफजल गुरु को महिमा मण्डित किया गया उसकी फांसी को कानूनी इनकाउंटर तक कहा गया, पाकिस्तान जिन्दाबाद, हिन्दुस्तान मुर्दाबाद, कितने अफजल मारोगे घर-घर से अफजल आयेंगे, इत्यादि इस तरह के कितने नारे लगायें वह मैं इस लेख के माध्यम से रिपीट करना नहीं चाहता, अधिक दुख इस बात पर हुआ कि केन्द्र में आसीन बीजेपी की सरकार अपने को राष्ट्रवादी सरकार होने का दावा करती है, और इस घटना में जो लोग भारत विरोधी नारे लगा रहे थे और पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगा रहे थे और आजाद कश्मीर की बात कर रहे थे, सोच की बात यह है कि वह लोग कश्मीर से संम्बधित नहीं थे और उस सारे कार्यक्रम को देखकर ऐसा लगता था कि वह एकदम से तैयार कार्यक्रम नही था उसकी रुपरेखा व माहौल काफी समय पहले से तैयार किया जा रहा था इस घटना से सबसे बड़ा सवाल निकलता है कि यदि देश की राजधानी के मुख्य विश्वविद्यालय में इस तरह की, सोच पैदा हो रही है और सरकार को कानो कान खबर नहीं हो रही है तो देश की खुफियां ऐजेंसी क्या करती रहती है, क्या यह खुफियां एजेंसियो का निकम्मापन नहीं है? कि इतने बड़े राष्ट्रविरोधी सोच जो वहां पर पनप रही है उसकी कोई जानकारी नहीं है, एक ऐसा आतंकवादी जो देश की संसद पर हमला करने का दोषी पाया गया और पूरी न्यायिक व्यवस्था के बाद 11 साल बाद उसको फांसी मिली और सर्वोच्च न्यायालय ने इस सजा को सुनाया, जेएनयू में जो विद्यार्थी प्रदर्शन कर रहे थे वह इस फांसी के एक न्यायिक इन काउंटर या मर्डर कह रहे थे इससे सीधा-2 साबित होता है कि उनका भारत की न्याय व्यवस्था पर विश्वास नहीं है, देश की इतनी बड़ी संख्या में इस तरह की सोच पल रही है तो कही आई एस आई एस के लिये हिन्दुस्तान विश्व की सबसे कमजोर कड़ी तो नहीं, पिछले दिनों गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने मुस्लिम धर्मगुरुओं से एक लम्बी मीटिंग करके आई एस आई एस के भारत में पैर फैलाने की संभावनाये और डर पर विस्तार में चर्चा की इस चर्चा में भी सारे धर्मगुरुओं ने एक स्वर में गृहमंत्री से मांग की कि मुस्लिम नौजवान लोगों को आतंकवादी होने के संदेह में परेशान न किया जाये, 9 फरवरी को जेएनयू में जो हुआ उन युवकों को क्या कहेंगे? क्या वह आतंकवादी है? नहीं! वह आतंकवादी नहीं है, लेकिन मैं ऐसा मानता हूं कि वह आतंकवादियों से भी खतरनाक है, क्योंकि आतंकवादी तो एक न एक दिन मारा जाता है, किन्तु आतंकवादी सोच रखने वाला समाज में जीवन भर जहर फैलाता रहता है।  बड़े अचम्भे की बात यह लगी कि 48 घण्टे बीत जाने के बाद भी देश की आंतरिक सुरक्षा से खिलवाड़ करने वाले इस यूनिवर्सिटी के मुखिया पर कार्यवाही तो दूर किसी ने सवाल जवाब भी नही किया, कि उसकी नाक के नीचे क्या पनप रहा है, ना मीडिया में इस पर किसी को बुलाकर चर्चा की मीडिया से तौ खैर ऐसी ही उम्मीद थी क्योंकि उनके लिये इससे अधिक महत्वपूर्ण यह है कि ‘‘शनि’’ ग्रह है या देवता, सांई बाबा संत है या भगवान और सबसे हैरानी वाली बात तो यह कि किसी भी नेता का बयान इस घटना के विरोध में नही आया, नेताओं के मानसिक स्तर की गिरावट की शायद यह प्रकाष्ठा है वह दिन कब आयेगा जब राजनेता हर घटना-दुर्घटना को वोट बैक की राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रीयता के दृष्टिकोण से देखेंगे, जेएनयू विवादो में आया यह कोई पहला मौका नहीं, इसका निर्माण 1969 में हुआ लगभग 9000 छात्र इसमें पढ़ते है एक हजार एकड़ का कैम्पस है और नेशनल असिसमेंट एण्ड एकीडीटेशन, काउंसिल द्वारा चार में से 3.9 के हायेस्ट ग्रेड प्राप्त देश की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी में है, इस यूनिवर्सिटी ने देश को उच्चकोटि के नौकरशाह, राजनेता, पत्रकार और डिप्लोमेंट दिये हैं, नौकरशाहों में (आई.ए.एस.) तो जेएनयू ने देश की अन्य किसी यूनिवर्सिटी के मुकाबले अधिक दिये। देश के सबसे प्रतिष्ठित पत्रकार जेएनयू ने दिये राजनैताओं में अशोक तंवर कांग्रेसी सेकेट्री, बाबूराम भट्टाराय, नेपाल के प्रधानमंत्री, उपप्रधानमंत्री कांग्रेस के दिग्विजय सिंह एनसीपी के डी. पी. त्रिपाठी, भारतीय जनता पार्टी के वर्तमान में केन्द्रीय मंत्री निर्मला सीतारमन, कम्युनिस्ट पार्टी के प्रकाश कारंत, विश्व बैंक में भारत के रिप्रजेटेटिव रंजीत नायक, आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता योगेन्द्र यादव जैसे न जाने कितने लोगों की लिस्ट जेएनयू के पूर्व विद्यार्थियों की है, लेकिन जेएनयू यह कौन सी खेप पैदा कर रहा है जो देश का अन्न खाकर देश विरोधी गतिविधियों को समर्थन कर रहा है। जब विश्वविद्यालय प्रशासन से इस कार्यक्रम की अनुमति मांगी गयी तो अनुमति लेने वालों ने इसको मात्र एक सांस्कृतिक कार्यक्रम बताया लेकिन जब प्रशासन को इस बात की भनक लगी कि यह मात्र सांस्कृतिक कार्यक्रम नही बल्कि एक राष्ट्रद्रोह का कार्यक्रम होने जा रहा तो उन्होंने अपनी अनुमति वापस लेकर अपने कत्र्तव्य की इति श्री मान ली, लेकिन क्या इतना ही काफी था? यदि प्रशासन को राष्ट्रद्रोह सम्बन्धी कार्यक्रम की भनक लग गयी थी तो क्यों नही इस तरह की व्यवस्था की कि यह कार्यक्रम सांस्कृतिक कार्यक्रम ही रहता, एबीवीपी के छात्रों द्वारा भी प्रदर्शन हुआ और दोनों में मुठभेड़ हुयी गनीमत है मुठभेड़ ने बड़ा रुप नहीं लिया जिससे एक बहुत बड़ा हादसा होने से टल गया। मैं समझता हूँ कि प्रशासन की लापरवाही ने आने वाले समय के लिये जेएनयू के विद्यार्थियों का आपस में जहर घोल दिया, इस विषय पर मूक रहना और अधिक हानिकारक होगा समय की आवश्यकता है कि इस सोच के कैसर को इस विश्वविद्यालय परिसर से जल्द से जल्द बाहर कर दिया जाये इस लिये इस विषय में केन्द्र सरकार को हस्तक्षेप कर उन तत्वों की पहचान करके उनके ऊपर उचित कार्यवाही करनी चाहिये ताकि इस केन्द्रीय विश्व विद्यालय का माहौल राष्ट्रीय व सौहार्द पूर्ण बना रहे।

 

शरद गोयल            

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