विकास के नाम पर बिनाषलीला बंद हो
- शरद गोयल
- Mar 9, 2024
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Updated: May 30
पिछले लगभग डेढ़ दषकों में गुड़गांव ने जिस प्रकार उन्नति की है। वह अपने आप में एक अनूठी मिषाल है। गुड़गांव में उन्नति का मापदण्ड मात्र बड़ी-2 इमारते, होटल और अस्पताल इत्यादि ही है, जहां तक सरकारी सुविधाओं का सवाल है उसमें विकास का यह फार्मूला लागू नहीं होता। मेरा विचार पूरी तरह से एक ही विषय पर केन्द्रित है। और वह है गुड़गांव में पिछले 15 सालों में हरित क्षेत्र (ग्रीन बेल्ट) के साथ जिस प्रकार छेड़-छाड़ की गई है या कहें तो चद्र असरदार लोगों के फायदे के लिये जिस तरह से बर्वाद किया गया है इसका उदाहरण शायद ही कहीं देखने को मिले। पहले तो गुड़गांव में ग्रीन बेल्ट बहुत कम है कही है तो वह बहुत छोटी जगह में है और यदि कही पर्याप्त जगह है तो उसका दुरुपयोग हो रहा है, और यदि किसी ने विरोध किया तो उनको सरकारी विभाग की अनुमति नामक चिट्ठी दिखाकर भगा दिया गया, यह सरकारी अनुमति भी बहुत ही विचाराधीन विषय है। आपने इफ् को चैक से पेड़ काटने और उसके एवंम् जो पेड़ लगाने की अनुमति मांगी है वह हो सकता है इफ्को चैक से बहुत दूर हो और यह भी हो सकता है कि बड़े पेड़ हो हमारी समय-समय पर यह मांग रही है कि गुड़गांव जैसा शहर जो कि प्रदूषण की दृष्टि से अत्यन्त संवेदनषील है में पेड़ों को काटने क अनुमति किसी भी स्थिति में नही मिलनी चाहिए। आपात कालीन स्थिति मे पेड़ों को स्थानान्तरित करना चाहिये चाहे उसके लिये कितना भी पैसा क्यों ना खर्च हो।
अब मैं आपका ध्यान कुछ क्षेत्र वाइज स्थितियों पर डालूगां और पूरे गुड़गांव का भ्रमण करवाऊंगा। आप सरहौल टोल प्लाजा से गुड़गांव में दाखिल होते है, बाये हाथ पर बने एक विषाल माॅल से पूरी ग्रीन वेल्ट को खत्म करके सर्विस रोड को तीन गुना चैड़ा कर दिया है। शंकर चैक तक लगभग एक कि0मी0 तक, और दुःख इस बात का है कोई भी यह पूछ़ने वाला नहीं है कि किस विभाग ने यह काम किया है। रेपिड मेट्रो ने लगभग चार कि0मी0 की ग्रीन वेल्ट में एक भी पौधा नहीं छोड़ा और नेषले की विल्ंिडग तक पार्किग व मलबे का ढेर है जिसमें एक भी पेड़ नहीं है। उसके बाद छोटे से हिस्से को इफ्को चैक तक मेंन्टेन किया है, और वह भी घास और डोकोरेटिंग प्लांट लगाकर। सम्बधित विभाग को यह समझने की आवष्यकता है कि इंसान के लिये बड़े वृक्षों का जो महत्व है। वह छोटी घास का बिल्कुल भी नहीं है। ग्रीन बेल्ट सुंदरता के लिये नहीं बल्कि इंसान के फेफड़ों का काम करती है। इसी बीच में दो जगह इस गीन बेल्ट को काट के काॅलोनी के लिये इंट्री द्वार बनाये हुये है। इसी प्रकार सिग्नेचर टावर से राजीव चैक तक भी कई प्रकार की इंट्रीज ग्रीन वेल्ट को काटकर बनायी गयी है। दायीं ओर आए तो 32 माइल स्टोन से इफ्को चैक तक भारत सरकार की एक कम्पनी ने भी अपनी इंट्री भी इसे काटकर बनायी है। और भी मात्रा में पेड़ों को क्षति पहुंचायी है। जल विभाग ने भी अभी वहां पर भारी मात्रा में कुछ निर्माण किया और बाकी इन दोनों प्रतिस्ठानों के ट्रक टैकर व बसे खड़ी रहती है। इंडिया बुल कार्यालय के सामने लगभग 5 कि0मी0 तक सभी पेड़ काटकर पार्किग बना दिया है। इसी प्रकार शंकर चैक से टोल तक ग्रीन बेल्ट खत्म करके सर्विस रोड को डबल कर दिया है। अतुल कटारिया चैक से पहले बांयी ओर एक स्कूल ने ग्रीन बेल्ट में अपनी बसे खड़ी की हुयी है। इन सबके अलावा जहां भी ग्रीन बेल्ट में शराब के ठेके व आहते खुले है वहंा पर पूरी ग्रीन बेल्ट को बर्वाद किया हुआ है। नेषनल हाइवे से लेकर बादषाहपुर तक लम्बे गोल्फ कोर्स रोड़ व गोल्फ कोर्स एक्सटेंषन रोड पर तो लगभग 5 हजार पेड़ों को काट दिया गया और उनके एवज में कहां पेड़ लगाये गये है किसी को पता नहीं है। कहां पेड़ों को काट दिया गया और ये तो मैंने थोड़ें बहुत उदाहरण दिये है। कमोवेष स्थिति सारे शहर की यही है। अब सवाल यह उठता है कि क्या शहर में ग्रीन वेल्ट की देख रेख के लिये एक अलग विभाग नहीं बनाया जा सकता जिसमें हुड्डा निगम व पी0डब्लूडी0 के कर्मचारी हो और इनका काम सिर्फ ग्रीन वेल्ट की देख रेख व मेन्टेनेंस हो। यह कोई असंभव कार्य नही है सिर्फ सभी अधिकारियों व राजनेताओं को यह सोचना होगा कि हम गुड़गांव को क्या बनाना चाहते है। इसे रातों रात बनें कंक्रीट के जंगल को और घना जंगल बनाना चाहते है या एक ऐसा शहर जिसमें आम जन अच्छी व स्वस्थ हवा ले सके। वन महोत्सव मनाने का एक रिवाज सा चल गया है। हर आर.डब्लू.ए. हर संस्थाये वन महोत्सव के नाम पर कार्यक्रम करती है तो चार डेकोरेटिव प्लांट लगाकर वन महोत्सव की रस्म अदायगी कर देते है। मेर अनुरोध है कि ग्रीन बेल्ट को घने जंगल मे बदला जाये और सुन्दर दिखने वाले डेकोरेटिव प्लान्टस के बजाय नीम, पीपल, जिलखन, जामुन, बेल आदि के पेड़ों से इस शहर को रहने लायक बनाया जाये वरना वो दिन दूर नहंी कि यह शहर साइबर हब नहीं बल्कि बीमारियों के हब के नाम से जाना जायेगा।
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