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आतंकी हमला’’ - बंद हो मीडिया ट्रायल

  • Writer: शरद गोयल
    शरद गोयल
  • Jul 1, 2024
  • 4 min read

पिछले दिनों पठानकोट में हुये आतंकी हमले ने पूरे देश को पूरी तरह से हिला दिया, और इस घटना से कई सवाल निकल कर आये, भारत-पाकिस्तान सम्बन्ध, हमारी विदेश नीति, प्रधानमंत्री मोदी द्वारा लाहौर यात्रा आदि, लेकिन एक बहुत बड़ी बात जो कि हर छोटी बड़ी घटना के बाद सामने आती है। वह यह है कि इस तरह की घटनाओं में हमारा मीडिया खासतौर से इलेक्ट्रोनिक मीडिया किस हद तक अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है, पठान कोट की घटना के बाद इलेक्ट्रोनिक मीडिया द्वारा रिपोर्टिग न केवल गैर जिम्मेदाराना बल्कि संसेशन पैदा करने वाली है, मात्र टी आर पी बढ़ाने के लालच में जिस प्रकार इलैक्ट्रोनिक मीडिया इस पूरे प्रकरण की रिपोर्टिग कर रहा है वह दुर्भाग्यजनक है, वैसे तो अन्य संवेदनशील व गैर संवेदन शील विषयों पर मीडिया की रिर्पोटें बहुत ही ज्यादा गैर जिम्मेदाराना होती जा रही है चाहे वह दादरी की घटना हो या फरीदाबाद की, बिना इस बात का अंदाजा लगाये कि उनकी इस संसेशनल रिपोर्टिग से आम आदमी दिमागी तौर पर कितना प्रभावित हो रहा है, इस प्रकार की रिर्पोटिग चलती आ रही है, रोज नये-नये न्यूज चैनल जिस प्रकार से टी आर पी बढ़ाने के लिये संवेदनशीलता की सारी हदें पार करते जा रहे है, वह एक स्वस्थ व्यवस्था के लिये विचारनीय विषय है, 26/11 की घटना के समय यह प्रमाणित हो गया था कि मीडिया की लापरवाही से ही कुछ लोगों की जाने गयी क्योंकि आतंक वादी टीबी पर लड़ाई देख यह पता कर रहे थे कि कहां पर होटल में लोग छुपे हुये हैं, इतनी बड़ी घटना के बाद तो मीडिया को सबक लेना चाहिये था लेकिन पठानकोट की घटना के बाद तो हद ही हो गयी। कोई चैनल अगवा किये गये एस0पी0 के अगवा किये जाने की इण्टोरेगेशन कर रहा है तो कोई उसके बावर्ची का, कोई उसके ड्राइवर से पूछताछ कर रहा है तो कोई उसके दोस्त से, मानों एक पल के लिये ऐसा लग रहा है कि जैसे एन.आई.ए. के लिये करने को कोई काम मीडिया ने छोड़ा ही नहीं, जो काम बड़े-बड़े एक्सपर्ट द्वारा किया जाना चाहिये वह काम एक सामान्य पत्रकार कर रहा है, आतंकवादियों के शवों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट डाक्टरों के दल द्वारा मीडिया के सामने उजागर करने की कोई आवश्यकता नहीं, आतंकवादियों के जूते-कहां बने, आतंकवादियों ने कौन सी कम्पनी के कपड़े पहने थे, उनके फिंगर प्रिंट, उनकी जेब का सामान उनके मोबाइल की रिकार्डिंग, पोजीशनिंग आदि सभी मामले जांच एजेंसियों द्वारा इन्बेस्टिगेट करने चाहिये ना कि मीडिया द्वारा, यह देश की एकता व अखण्डता के लिये बहुत बड़ा खतरा साबित हो सकता है, इस प्रकार की रिर्पोटिंग के बाद शाम को प्राइम टाइम में पैनल द्वारा उस पर चर्चा व उस पर अपने-2 न्यूज देना मानों ऐसा लगता है कि हम न्यूज चैनल नहीं व्यूज चैनल देख रहे है राजनैतिक पार्टियों के लोग जिनको इन्वेस्टिगेशन का एक शब्द भी नहीं पता वह उस पर विचार करते है, एक दूसरे पर आरोप लगाते है, ऐसा लगता है कि आज ही मुकदमा शुरु हुआ और आज ही फैसला आ जायेगा, कुछ चैनलों ने एक नयी परम्परा शुरु की जो कि बहुत ही दुर्भाग्य जनक है, रात को बहस के दौरान पाकिस्तान के पत्रकारों को निमंत्रित करते है, उनके व्यूज लेते है, और वह राष्ट्रीय मीडिया पर खुलेआम हिन्दुस्तान को गालियां देते है और उनकी गालियां हमारे तथाकथित लोकतंत्र के चैथे-स्तम्भ द्वारा सवा सौ करोड़ भारतीयों को परोसी जाती है, आज कल जो मीडिया की स्थिति हो गयी है उसे देख कर लगता है कि हम जरुरत से ज्यादा ही आजाद हो गये, हम इतनी आजादी के पात्र नही थे, हमें सीमा में रह कर ही आजादी मिलनी चाहिये थी, क्योंकि इलैक्ट्रोनिक मीडिया द्वारा इस तरह का दिखावा इस देश की एकता व अखण्डता के लिये बहुत बड़ा खतरा है। मैं इस लेख के माध्यम से माननीय उच्च न्यायालय से यह गुहार लगाता हूँ कि स्वयं संज्ञान लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा व एकता पर मीडिया ट्रायल तुरंत बंद करने का आदेश दें। न्यूज चैनल पर को न्यूज चैनल ही रहने दे व्यूज चैलन न बनायें क्योंकि राजनेताओं में इतना दम नही कि मीडिया पर अंकुश लगा सके क्योंकि राजनेता तो खुद दिखास की बीमारी से ग्रस्त है, क्योंकि अपने ही घरों में राजनीति करने वाले राजनेता इन पर किसी प्रकार का अंकुश लगाये यह मुझे उम्मीद नही, लेकिन भारत का आम जन जब पूरी व्यवस्था से निराश हो जाता है तो उसको सिर्फ व सिर्फ न्याय व्यवस्था पर ही विश्वास होता है और अब समय आ गया है कि न्याय व्यवस्था इस पर तुरंत संज्ञान लेकर हमेशा के लिये राष्ट्रीय, एकता, अखण्डता व सुरक्षा से जुड़े विषयों पर मीडिया ट्रायल बंद करें व समस्त इलैक्ट्रोनिक मीडिया के लिये एक पुख्ता आदेश दें, क्योंकि वारदात के बाद इस हद तक रिर्पोटिंग करनी है और इसके बाद जांच एजेंसिया जो प्रेस रिलीज देंगी सिर्फ उन्हीं को छापना है, इत्यादि और भी कई प्रकार के प्रतिबंध लगाये जा सकते है जो कि सिर्फ देश की एकता अखण्डता व सुरक्षा तक ही सीमित हो अन्यथा एक नया बवाल इस देश में खड़ा हो जायेगा क्योंकि यह एक नया बवाल खड़ा करने का इन्तजार करता रहता है, इसलिये मीडिया पर पाबंदी प्रेस की आजादी जैसे नये बवाल को न होने के लिये माननीय उच्चतम न्यायालय ही इस प्रकार आदेश दे सकती है जो कि इस देश की एकता अखण्डता व सुरक्षा के लिये बहुत ही आवश्यक है।

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